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प्रभु प्रेम

बैठ अकेले अंतर्मन मे हिय 

क्यो निषदिन सोचे जाय 


बिन सींचे सिंच रही जो 

वो प्रतिदिन बढती जाय 

प्रेम बेल वट वृक्ष बनी 

हिये हजारो चित्र सजाय 


वार - वार यूँ तोड़ रहा मैं 

फिर-फिर ज़ड़ चेतन हो जाय 

प्रभु का मोहक रुप भला  

छल ह्रदय को

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