
दर्द लिखूँ या लिखूँ मैं अपनी हालात
बेचैनी लिखूँ या लिखूँ मैं वो कसक
आँखों के काले आँसूं बहे थे
जब तुम मुझे छोड़ गए थे
हाँ तुम्हारे नाम का काजल लगाया था
वो बह गए थे तुम्हारे जाने की खबर से काँच की चुड़ियाँ जो पहनी थी
वो तोड़ दी गई थी
हकीकत में मुझे काँच की
तरह तोड़ दिया गया था
तेरे जाते ही
जलते दीये को राम जी ने बुझा दिया था
मेरा सुहाग उजाड़ दिया था
विधवा नाम मुझको दिया गया माँग से सिंदूर पोछ दिया गया
जो तेरे नाम के नाम मैं
लगाया करती थी
मैं रोती नहीं क्योंकि
आँसू तो सूख गए मेरे
तुम मुझसे रूठे थे
या किस्मत मेरी फूटी थी
पता नहीं
पता तो बस इतना है
जीवन मेरा बस अब अकेला है
जीवन साथी ने
साथ सदा के लिए छोड़ा है दो चिड़ियाँ दिखाई थी तुमनें
और कहा था यह हम दोनों हैं
पर देखो ना वो दोनो तो आज भी साथ है
पर तुम क्यों नहीं हो मेरे साथ
कहाँ उड़ गए तुम?
मेरी नींद तुम उड़ा ले गए
जब से तुम सदा के लिए सोए आज भी मुझे याद है
जब से सुहागन हुई थी मैं
कहते थे लोग
निखर गई हूँ मैं
पर तुम्हारे जाते ही
बिखर गई हूँ मैं छन-छन पायल की आवाज से
घर गूंजा करते थे
अब मेरी चीखों की आवाज से
मेरा मन गूंजा करता है
तुम्हारी जान थी ना मैं
आज बेजान हो गई हूँ मैं तुम्हारा होना
और तुम्हारा होने में होना
बस दिल को तसल्ली देने वाला है विधवा हूँ मैं
तिरस्कार की घूंट पीती हूँ मैं
श्रंगार के नाम पर सिहर जाती हूँ मैं
सहारा नहीं मिलता बस सलाह ही मिलती है
अछुत सा व्यवहार होता है
शुभ कर्मों से हटाया जाता है
विधवा कह कर बुलाया जाता है कोई झांकने तक नहीं आता है
ना दवा देता है ना देता है जहर
बस ताने ही मिलें हैं
बस तड़पता छोड़ जाता है
तेरे जाते ही घर का चुल्हा बुझ गया था
पर ह्रदय में आग लग गई थी
कहते हैं लोग
मैं तुम्हें खा