
आज भी हम सो गए, तुम सिरहाने बैठे रहे रात भर मेरे।
कब जुनूं शांत पड़ गया मेरा पता ही न चला।
कब मुझे मोहब्बत ने अपने दामन से जुदा किया पता ही न चला।
अश्क मेरे बेबाक निकलते थे अगर तुम इक दिन भी न दिखते थे, कब दिल को धीरे धीरे जुदाई की आदत हो गई पता न चला।
अक्सर कहते थे मुझसे मेरे चाहने वाले साथ उतना ही हैं जब तक रास्ते में मोड़ नहीं।
हम नादान मोड़ो को कमजोर समझने की जहमत कर बैठे।
फिर इक मोड़ आया बहुत ही ताकतवर था, जुदा कर गया।
हर इक सपना, मेरी डायरी के हर एक पन्ने को दो हिस्से में बांट गया।
क्या लिखा था न तो पढ़ने में आता है न ही ये समझ आ रहा है कि क्या सोच कर लिखा होगा मैंने।
अरे हां सोचता कौन हैं मोहब्बत में?
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