![yeh pal yu hi beet jaata hai's image](/images/post_og.png)
जो कुछ सोचा था
वह रेत हो जाता ह,
शाम को सोचा ख्याल
रात को सताता है,
यह पल यु ही बीत जाता है,
बचपन मैं सुनने गाने
जवानी मैं क्यों समझ आते है
किताबो से ज्यादा
इन् किताबो की खुशबू क्यों सुहाती है
न जाने क्यों अब, बच्चो की किलकिलारी भी रुलाती है
इन अकेली रातों मैं यह दिल क्यों सहम जाता ह
हाय, यह पल क्यों नहीं बीत जाता है
आँखों मैं सजाये सपने सहसा भीग जाते है
हर दिन हिम्मत कर इन्हे, सुखाया जाता है
न जाने वह पल क्यों नहीं बीत जाता है
जो बचपन बड़े होने का सोच के हँसा करता था
वह बड़ा, आज क्यों नहीं मुश्करता है,
दोस्तों के साथ जीने वाले
आज दोस्तों से भागा करते है
प्यार सीखने वाले सयाने लोग
खुद गालियों का जाप करते है
ऐसे ही, यह पल यु ही बीत जाया करते है
इन खाली चार दीवारों मैं
क्यों नहीं गूंजती मेरी हसी
इस प्रश्न का जवाब क्यों नहीं विज्ञान बनाता है
क्या विज्ञान को भी अस्वीकारता का डर सताता है