ग़ज़ल-
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इजाज़त हो सुनाऊँ यार ग़ज़लें
बदन के ज़ाविए पर चार ग़ज़लें
कई सौ शेर तन्हा हो गए और
ग़ज़ल के नाम पे बस चार ग़ज़लें
हमारा काम अच्छा चल रहा था
हमें भी हो गई दुश्वार ग़ज़लें
हमारी ज़िंदगी में यूँ समझिए
निभाती हैं कई क़िरदार ग़ज़लें
लगाते हैं अभी जो प्यार की रट
कहेंगे एक दिन दीं-दार ग़ज़लें
हुए हैं जिसके चक्कर में ग़ज़लगो
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