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जिन रास्तों पर मंजिल ना हो

जिन रास्तों पर मंजिल ना हो उन पर चलना छोड़ दिया है हमने,


किसी और से अब और नहीं, अब सिर्फ खुद से उम्मीदें की हैं हमने,


जो अपने घोंसले में समेटे हुए कुछ सपने लिए बैठे थे,


पंख तो थे मगर कभी उडने के ख्वाब से भी डर से जाते थे,


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