
नाम दर्ज आज तक
एक थप्पड़ नहीं,
जो हमपर उठाया हो।
या कि गुस्सा ही कोई,
जो अनायास बरस पड़ा हो।
एक याद भी नहीं ऐसी कि
चाहत रही एक खिलौने की
और पूरी ना हो पाई हो।
कितना कुछ है ना,
जो हम समझने में असमर्थ हैं?
कब हम बदले?
कब परिस्थिति?
कब हावी होने लगा आज,
बीत चुके उस कल पर?
कब प्रबल हुई जवानी अब की
धूमिल उस बचपन पर?
छिड़ गई जब
कल बहस एक
पापा से थी किसी बात पर,
वो पहली दफा शायद
चिल्ला कर बोल रहे थे मुझसे।
मगर सब सुना नहीं अच्छे से,
आखिर क्या कह रहे थे मुझसे।
वजह, मैं उनसे ऊंचा बोल रहा था।
मगर अक्सर मेरे साथ
यही
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