
एक नोटबुक
जिस पर दर्ज़ रहे होंगे
गणित के दर्जनों सवाल,
जिन्हें सुलझाना बाकी था।
या फिर दर्ज़ रही होगी
कोई अधूरी कविता,
जिसका कवि अब एक
कल्पना बन चुका होगा।
वह नोटबुक जिस पर
3 परतों जितनी,
मोटी जिल्द चढ़ी होगी
एक नर्म बस्ते में रखने के लिए।
अब वह कंकड़ों में
सिसकियां ले रही है।
वह फल जिसे काटकर
खाया जाना था,
फटा हुआ
जमीन पर पड़ा हुआ था।
वह प्रतीक था,
मनुष्य की फटी हुई मानवता का।
वहां सब कुछ भरा हुआ था
ऐसी चीजों से,
जो कुछ नहीं बोलती
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