
'हिन्दी ही क्यों?' - पढ़िये हिन्दी दिवस पर अनुराग अंकुर का विशेष लेख।
अंग्रेजी माध्यम का छात्र होने के कारण मेरे साहित्यिक कार्यों को देखने के बाद मेरे कई बार मित्र पूछते हैं - 'हिन्दी ही क्यों?'
तो हिंदी इसलिए नहीं कि यह मेरी विरासत या सांस्कृतिक भाषा है, बल्कि हिंदी इसलिए की बाल्यावस्था में जो क्रीड़ा के बाद उत्पन्न पीड़ा और थकान से ग्रस्त, धूल - धूसरित, शरीर के हर उस चक्षु को भी बगैर किसी औषधि या चिकित्सकीय निरीक्षण के बंद करने में समर्थ मातृप्रेम का और कुछ यों कह सकते हैं कि जीवन का पहला राग, वह वात्सल्य गीत (लोरी) मैंने हिंदी में ही सुना।
गौरतलब है कि जीवन का प्रारब्ध जिस किसी भी सकारात्मक पड़ाव से हुआ हो उससे मुंह मोड़ना स्वयं के प्रति, लोक के प्रति तथा इस संपूर्ण सृष्टि का नियामन करने वाले उस परमपिता परमेश्वर के प्रति एक जघन्य अपराध ही नहीं मानवता के प्रति भी कृतघ्नता होगी। ठीक उसी प्रकार मुझ मानव के चित्त में उत्तम चेतना और उत्तम चरित्र के दीपक को प्रज