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दास्तां

तेरी मेरी दास्ताँ जो किसी ने सुनी नहीं

कुछ बातें जो कभी अल्फ़ाज़ो में बुनी नहीं

सोचा है कुछ लफ़्ज़ चुरा के वक़्त से

उन सब बातों को अब ज़ुबान मिले

जो रह गयी थी पीछे कही

या जो मेने तुमसे कभी कही नहीं।

ये जो मंज़

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