
मैं कुछ अपनी याद लिख रहा हूँ मैं तुम्हें लिख रहा हूँ - आखिरी खत
खत
इस व्हाट्सएप , मैसेज और कॉल के बाद भी मैं खत लिखना चाहूँगा | मैंने आज तक किसी को खत नहीं लिखा | कभी जरूरत ही नहीं पड़ी |
मुझे पता है कि ये खत तुम्हारे हाथ नहीं लगेंगे, लेकिन मैं फिर भी लिखूँगा |
ख़त लिखने की ये मेरी आखिरी कोशिश है |
मेरी गजलें और कविताएं भी रो पड़ते हैं हमारे साथ, फूल और कांटे बन जाते हैं |
फिर भी मैं यह खत तुम्हारे लिए लिख रहा हूं |
ज़िन्दगी के इस उतार -चढ़ाव को देर से समझना लाज़मी ही था। पर अब खुश हूँ मै कि एक आख़िरी खत लिख रही हूँ मैं…..
तुम्हारी वो अस्सी घाट रामनगर का किला।
तुम्हारी वो सुबह -ए बनारस की महफिलें।
मैं कुछ अपनी याद लिख रहा हूँ.. मैं तुम्हें लिख रहा हूँ...
याद है मन्दिर की सीढियाँ चढ़ते हुए कैसे तुमने मेरा हाथ पकड़ लिया था….कहीं हम लोग बिछड़ ना जावे...
मुझे जब वो दिन याद आते है प्रिय कवि केदार नाथ सिंह याद आते हैं …उनकी वो पंक्तियाँ।
“उसका हाथ मैंने अपने हाथ में लेकर जाना कि दुनिया को हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए….”
वो तो बाते याद