Ghazal's image

भँवर में ऐसा सुलझा

तैरने में मज़ा आने लगा

ना किनारों की फ़िक्र रही

डूबने का डर जाने लगा


दुनिया के जश्न तारीख़ों से बंधे हैं

मैं रोज़ अपना ही जश्न मनाने लगा


आसमानों पर ना रास्ते हैं ना मंज़िलें

डोर उसे सौंप कर पतंगे उड़ाने लगा


रोशनी किसी की मिलकियत नहीं होती

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