Ghazal's image

निशाँ मिटा दिए जाते हैं बर्बाद होते ही

कोई याद भी नहीं करता याद होते ही

तेरी क़ैद मुझे एक सफ़र में रखे हुई थी

गुमराह हो गया हूँ तुझसे आज़ाद होते ही


प्यार करना जिसने मुझसे सीखा था

उसने निभाया कहीं और उस्ताद होते ही


दर पे भीड़ क्या बढ़ी रूहानियत चली गयी

फ़क़

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