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आज के दिन इंसान ही कहना

चलो आज कोशिश कर ही लो

मुझे सुनाने की, एक औरत को पूरा बताने की

कलम से कहो स्याही ऊपर तक भर ले

जिगर थाम ले आँखों को थोड़ा नम कर ले

पर याद रहे कुछ छूट ना जाये

मेरी शख़्सियत की कड़ी कहीं से टूट ना जाये

बस अपने मन की मत कहना

मुझसे भी पूछते रहना

बाहर से मत तकना अपने अंदर भी मुझको ढूँढते रहना

मैं साक्षी रहूँगी तुम्हारी इस कविता की

गहरे सागर की और बहती सरिता की

तो शुरू करो.. शिष्य बनो इक बार नारी को भी गुरु करो


मेरे आंसू लिखना आसान है

मेरी ख्वाहिश लिखना

मेरी चाहत लिखना..

बांधना मत मुझे सिर्फ़ परिवार तक

मेरी रूह की हर राहत लिखना

हाँ माँ कहना मुझे पर किसी की सखी भी कहना

सिर्फ़ तुम्हारे नहीं जो अपने दुख से दुखी भी कहना

मेरे सपने लिखना..

जो सिर्फ़ मुझे पता हैं वो मेरे अपने लिखना

बलिदानी मत कहना सदा स्वार्थी भी लिखना

जो माफ़ करे माफ़ी माँगे क्षमा प्रार्थी भी लिखना

मेरा त्याग नहीं अनुराग भी लिखना

जो आँखों में खटकेगा वो भाग भी लिखना

मैं हमसाया नहीं बस केवल साया भी हूँ

मैं केवल हमदर्द नहीं अपना दर्द भी हूँ

मैं घर बनाती ही नहीं चलाती भी हूँ मर्द भी हूँ

मैं हँसना जानती हूँ और हँसाना भी

मैं पुराना रिवाज़ हूँ और नया ज़माना भी

मत कहना मैं पूरी हूँ 

धरती से चाँद की दूरी हूँ

कैसे नापोगे या आधा सच छापोगे

बदन लिखना अदा लिखना रूप लिखना

पर वहाँ मत रुक जाना मुझे आगे तक दिखना<

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