
तुम्हारी और मेरी
एक लड़ाई अब भी बची है,
मै बस इंतजार कर रहा हूँ
पहले जो लड़ाई खुद से लड़ रहा हूँ
उसे जीत लू,
फिर तुमसे भी लडूंगा !
हर रोज़ तुम जो सामने आईने में आ जाती हो
और खुद ही खुद को देखकर
पलक झपकते ही चली जाती हो
क्या जरूरत है रोज़ाना इतना दूर चलकर आने की
यादें ही बहुत है न !
और हाँ!
तस्वीरें भी तो छोड़ी है न तुमने
अब ये बहुत चुभती है
वक्त इन्हे घिस घिस कर और कोरा’ बना रहा है !
सुनो कल गया था मैं,
बगल वाले उस पार्क में,
वहाँ सब थे – सब मगर..
उस झूले में तुम नज़र आयी.
उदास, शांत, चोटिल
यादें जरूर थी वहां
उनके साथ कोई तो था जो खेल रहा था
शोर मचा रहा था
पता नहीं कौन था,
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