
आधुनिक भौतिकतावादी समाज में मानव का जीवन सभी आयामों में तीव्रगामी होता जा रहा है, परंतु इसी मानव जीवन का एक पहलू ऐसा भी है जो निरंतर अधोगामी होकर मरणासन्न हो रहा है और वह पहलू है नैतिकता व आध्यात्म का पहलू, जो मानव को मानवता का प्रतीक चिन्ह प्रदान करता है।
समाज में बढ़ रही हिंसक मानसिकता ने इस नैतिकता को ऐसी गहरी खाई में धकेल दिया है जहां व्यक्ति सामाजिक, धार्मिक, चारित्रिक व नैतिक पतन की ओर बढ़ता जा रहा है। इस डिजिटल युग में इन नैतिक मूल्यों का ह्रास भी डिजिटल होता जा रहा है और साइबर अपराध इसका सर्वोचित उदाहरण हो सकता है। मूलभूत नैतिक मूल्य जैसे दया, क्षमा और करुणा भी लगभग समाप्त ही होते जा रहे हैं। नैतिक पतन की ओर उन्मुख इस समाज के लिए वह दिन अब दूर नहीं जब व्यक्ति असहिष्णु होकर हिंसा को न्याय का माध्यम समझने लगेगा जो कि सर्वथा अनुचित है, जिसे नैतिक भाषा में केवल प्रतिशोध की संज्ञा ही दी जा सकती है।
महात्मा गांधी ने अपने दर्शन में सदैव ही कहा है कि "साध्य के साथ-साथ साधन भी पवित्र होना चाहिए" परंतु संकुचित मानसिकता से भरे इस समाज में व्यक्ति साध्य की पवित्रता को तो स्मरण रखता है