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खुद को वापस नई सी मिल जाऊँ मैं

क्या ये मुमकिन है के कहीं खो जाऊँ मैं, 

और फिर खुद को वापस नई सी मिल जाऊँ मैं।। 


तलास पाऊँ मेरे अंदर छिपी अपनी हक़ीक़त को कहीं, 

फिर ऐसे खुद में ही बेफिक्र खुल कर बिखर जाऊँ मैं।। 


घुट रही हूँ अंदर ही अंदर मैं इन उम्मीदों की अदृश्य जेल से, 

काश जीत पाऊँ ये मुकदमा खुद से और उम्रकैद से बच जाऊँ मैं।।


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