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नारी तुम केवल श्रद्धा हो.....??

नारी तुम केवल श्रद्धा हो........??

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" नारी तुम केवल श्रद्धा हो ",

ये कहने वाले चले गए,

और इस पंक्ति के एवज में

बस बर्षों तक हम छले गए ।


तुम सह जाओ — तुम धरती हो ।

तुम बिछ जाओ — तुम जाया हो।

तुम भूख मिटाओ — माता हो ।

संतति सँभालो — माया हो।

बेरंग - रूप आकार हो तुम....

आकार नहीं, आभास हो तुम !!

मैं धूरी हूँ, मुझसे निकली.....

तुम केवल मेरी छाया हो।


हम दाल न थे , फिर वर्षों तक...

यूं चक्की में क्यों दले गए ?

नारी तुम केवल ....................


तुम काली हो, तुम दुर्गा हो,

तुम देवी हो —के शोर हुए,

हम शक्ति के अवलंब थे,

रिश्तों की ख़ातिर कमज़ोर हुए।

हमनें पूजा, सम्मान दिया...

और परमेश्वर तक कह डाला।

इस प्यार, समर्पण, पूजा से...

हम पतिता, वो मुँह ज़ोर हुए।


जल बिन मछली.. जीवन भर थे,

और अंतकाल भी तले गए ।

नारी तुम केवल श्रद्धा..................


वो सूत्र नहीं था,

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