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जाग-जाग री सुप्त भाग्य की रेखा।

जाग-जाग री सुप्त भाग्य की रेखा।

 

सोयी– सी तकदीर जाग अब

छेड़ मृदुल नवगीत- राग अब, 

हारे में  भर आस और  दम

कर   न   उन्हें  अनदेखा ।

जाग-जाग री सुप्त भाग्य की रेखा। 


यत्न  सभी  करके  देखा  है 

बनती  नहीं  भाग्य - रेखा है, 

भाग्यहीन  नर  के&n

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