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तू गंगा की मौज

जाने कैसे सपनों में अखियां खो जाती हैं

इतिहास में शायद एक ही वो, कभी आती हैं


पैर जब ज़मीं छोड़ उड़ते हुए ले जाती हैं

वो सिर्फ एक ही थी, इतिहास याद दिलाती हैं


चेहरे तो बदलतें हैं रोज़

बदलता ही जायेगा

सर आंखों पर आपका यह नाम लेकिन

कभी न गुम जाएगा


दम भर जो उधर मुंह फेरे

ओ चंदा आज तू

रो दे शायद तारीख की रुह

इस रात की सुबह शायद कभी न फिर आयेगी

ऐ चं

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