
मैं सागर? से भी गहरा हूँ
, तुम कितने पत्थर फेकोगे,
मैं अंगारों पर भी चल सकती हूँ
तुम कितने ?आग लगावोगे,
न रूकुंगी, न थकुंगी, तुम कितने काटे बिछाओगे,
हार कर जीतने के सपने लिए मैं पल पल कदम बढाउंगी
, मैं सागर से भी गहरी हूँ,
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