दफनती मैं's image

40 poems in 40 days challenge


मेरा कमरा मेरी कब्र है,

जहां हर रोज का जीना,

और,

हर रोज़ का मरना होता है,

हर रात कयामत होती है,

और हर सुबह रौनक होती है,

छोटा सा कमरा है,

और बड़ी सारी चीजें,

कुछ खुली बिखरी आँखें मिंचे,

जगह जगह गढ़े हैं,

और कोना कोना खाली,

कहीं कलियां मरी पड़ी है,

कहीं स्याहियां दफ़न है,

बिस्तर मरुस्थल बना पड़ा है,

और सिरहाने नुकिले बन,

किसी के सीने से लग,

जान ले ले,

खिड़की दरवाजे सब तंग है,

कोने के ऊपर में लगी,

वो छिद्र,

रोती है मुझे देख के,

कयामत हूं मैं,

और तबहिया मुझे ख़त्म कर देती है,

साफ सुथरे पैरो के,

इतने घायल निसां है,

मजाल है,

झाड़ू के सिंको से,

कभी उनकी बन जाए,

दुआएं दीवारों पे नहीं,

फर्श पर लिखीं हैं,

मेरी आँखें,

निगाहों से,

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