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मैं तुझे फ़िर मिलूँगा

नदिया की वो धार जब
तुझे छुकर गुज़रेगी
और छल छल उस आब से
तेरी दांईं प्यास बुझेगी
तब मैं तुझे फ़िर मिलूँगा

शमीम-ए-पैरहन-ए-यार जब
कुछ कुछ मुझसी महकेगी
और उस सर्द कोहसारों में जब
नैरंग एक गुल खिलेगी
तब मैं तुझे फ़िर मिलूँगा
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