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ग़ज़ल के कुछ शेर ... (001)

तुझे अपनी ग़ज़लों में फिर , ज़िंदा कर रहा हूँ मैं

यूँ एक बार और खुद को , शर्मिंदा कर रहा हूँ मैं

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