मालूम हो चला है, मैं फिर से ठगा गया हूँ
कभी लब्जो की लाहज्जो में, कभी उम्मीदों की मृगतृष्णा में ।
मैं ठगा गया हूँ विश्वास की प्रपंचना में ।
हासिये प
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कभी लब्जो की लाहज्जो में, कभी उम्मीदों की मृगतृष्णा में ।
मैं ठगा गया हूँ विश्वास की प्रपंचना में ।
हासिये प