ग़ालिब की शायरी में जो ऊँचे ख़यालात और गहरे जज़्बात थे,
आज की नई पीढ़ी मे वो फ़न और अंदाज़ कहाँ है,
आईने में अक्स देखकर तैरती मछली की आँख बीन्ध देते थे,
इस कलियुग में अर्जुन जैसे अब तीरंदाज़ कहाँ हैं,
आज तूफानों के बवंडर मे डूब रही है हमारी लोहे की कश्तियाँ,
बचपन में बारिश के पानी में चलने वाले वो कागज़ के जहाज कहाँ है,
दौलत कमाने की इस भाग-दौड़ में
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