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शरीर छूटे और मैं जाऊं।

लगता नहीं इस जहाँ का मैं,

किसी और ग्रह का नज़र आऊं,


समझ के परे हैं बातें यहां की,

बेवजह मैं जिनमें उलझता जाऊं,


ऐसा तो कोई गिला नहीं पर,

मन ना यहां मैं लगा पाऊं,


जो निकलूं ढूंढने कमी किसी में,

तो दोष बस ख़ुद ही में पाऊं,


जीवन है एक खेल

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