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एक धागा मित्रता का।

जिस जगह से नहीं लगाव कोई,

उस जगह की ओर मैं मुड़ने लगा,


बस यूं ही अचानक मैं मिला था तुझसे,

फिर तुझसे मैं जुड़ने लगा,


बातों के साथ मुलाकातें बढ़ीं,

ये सिलसिला यूं ही चलने लगा,


एक अच्छी आदत की तरह,

तुझसे अक्सर मैं मिलने लगा,


सहमति-असहमति के बीच,

एक अच्छा ज़िक्र हो जाता है,


राहों में मिला एक अजनबी भी,

एक अच्छा मित्र हो जाता है,


वैसे तो मुझसे समझदार है तू,

बस कहीं-कहीं नादान है,


इतना

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