सुनो जन का अश्रव्य दारूण गान।
जहाँ पहुंचे न ज्योति रवि की, वहाँ करो प्रस्थान।।
जो वांछित, असहाय , अकिंचन, नीरस जिनका संसार।
जो निष्कासित मुख्य पटल से, उनमें भर दो प्राण।।
जहाँ पड़ी न विभा प्रगति की, तमस छत्रछाया अनंत में।
अरुण, सुधाकर जिनको प्रतिदिन, लागे एक समान।।
जहाँ
जहाँ पहुंचे न ज्योति रवि की, वहाँ करो प्रस्थान।।
जो वांछित, असहाय , अकिंचन, नीरस जिनका संसार।
जो निष्कासित मुख्य पटल से, उनमें भर दो प्राण।।
जहाँ पड़ी न विभा प्रगति की, तमस छत्रछाया अनंत में।
अरुण, सुधाकर जिनको प्रतिदिन, लागे एक समान।।
जहाँ
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