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युद्ध के बंदी

चेहरे पर पानी की छीटों से, मुझे ज़िंदा होने का ज्ञान हुआ

चौकी पर जो विस्फोट हुआ, मैं था उसमे अज्ञान हुआ 


आँख खुली तो मैंने देखा सब, अपने जैसे हीं चेहरे थे 

अपने जैसे वर्दी उनकी, अपने जैसे हीं पहरे थे 

 

चारदीवारी के अंदर सबकुछ, जाना पहचाना दिखता था 

 बोली, भाषा, चाल-चलन सब, अपनो जैसा लगता था 


कमरे में थे लोग कई, बस मेरी ही रखवाली में 

जगते मेरे भोजन आया, सजा के रक्खी थाली में 

           

मैं सोचा के अपने घर तक, साथी मुझे उठा लाए 

दवा कराई, देख-भाल की, शत्रु के पकड़ से छुड़ा लाए 


तभी अचानक तंद्रा टूटी, कंधे पर कुछ स्पर्श हुआ 

पीछे देखा एक उच्च अधिकारी, मेरे सर पर था खड़ा हुआ 

                       

उसे देखकर सावधान मुद्रा में, मैंए खुद को खडा किया 

पैर पटक कर सलाम ठोक कर, सीना अपना कडा किया 

                                   

मुझे देख वो थोड़ा ठिठका, और थोड़ा सा घबराया 

जय हिन्द के नारे का भी, जवाब ना डंग से दे पाया 

 

तभी उसकी वर्दी पर मैंने, कुछ अजीब सा देख लिया 

ध्वज की पट्टी लगी थी उल्टी, मैंने खुद को सचेत किया 


पर अपने चेहरे से मैंने, भाव न कुछ भी झलकाया 

समझ गया था क़ैदी हूँ मैं, पर थोड़ा ना घबराया 

                                   

वो बोला मुझसे विश्राम सिपाही, स्थिति का बखान करो 

कहाँ छूटे थे तुम टुकड़ी से, उस स्थान विशेष ध्यान धरो 


देख कर उसके हाव भाव को, मैं थोड़ा सा मुसकाया 

मेरी व्यंग्य हंसी के कारण, वो भी थोड़ा झल्लाया 

 

आदेश सुनाया फिरसे मुझको, गुस्से में आवेग में 

मैं मस्ती से पाँव पसारे, जाकर सो गया सेज में 


देख कर मेरी मनमानी फिर, उसने मुझको धमकाया 

मान भंग का दंड मिलेगा, मुझको फिर से समझाया 

 

मैं बोला कैसे फौजी हो, तुमको तनिक भी ज्ञान नहीं 

झंडे को उल्टा रक्खा है, देश का तुमको मान नहीं 


मेरी इतनी सी बात पर उसने, जैसे सबकुछ जान लिया 

चाल सभी बेकार हो चुके, एक क्षण में हीं भांप लिया 

 

अगले हीं पल चार सिपाही, मुझको घेरे खड़े हुए 

मुंह मेरा खुलवाने के जिद पर, जैसे वो थे अड़े हुए 


पहले तो डराया मुझको, फिर बुरी तरह से धमकाया 

देखकर मेरा अड़ियल पन फिर, बड़े प्यार स

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