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वंश चालीसा

४७ में पड़ गयी एक पीढ़ी की नींव

नाम लिया उधार में करने सीधी रीढ़

आजादी तो आई थी बस उनके हीं द्वार

कुर्सी पर क़ाबिज़ रहे वर्षों तक कई बार

 

पीढ़ी तक चलती रही इनकी हीं दरबार

नवरत्न बनने वालों की लम्बी थी क़तार

चापलूस थे भरे परे बादल से घनघोर

जहाँ-तहाँ दिख जाते थे देखो जिस भी ओर


बाप ने लाठी खाई थी अंग्रेजों के हाथ

स्वराज का नारा दिया मिलकर सबके साथ

स्वतंत्रता जगा गयी सबके मन में आस

हाथ जोड कर जा पहुँचे तब बापू के पास

 

दो दलों में बंट गयी तब पार्टी की धार

एक के प्रिय चाचा रहे दूजे के सरदार

बापू ने बना दिया चाचा को सरताज

तब से बस चलता रहा इसी वंश का राज


१७ साल की अवधि में निर्णय लिए अनेक

काँटा बन सब चुभते है जो काम रह गए शेष

सियाचिन या कश्मीर हो या धरा कोई विशेष

पूर्ण ना कुछ भी हो सका हर कार्य में रहा क्लेश

 

६६ में बेटी बन गयी देश की जिम्मेदार

निर्विवाद सा हो गया उसका राजश्रृंगार

देश के सम्मान को कर दिया और बुलंद

दुश्मन के हर वार का जवाब दिया प्रचंड

 

उसके तानाशाही की किस्से है अनेक

नस बंदी और आपातकाल उनमें से कुछ एक

पार्टी के आवाज़ में दिखा जो अंतर्द्वंद

देश के लोकतंत्र का कर दिया पल में अंत


८४ में मारी गयी दुर्गा की अवतार

पार्टी का रहा नहीं तब कोई भी तारणहार

पायलट बेटा बन गया देश का पहरेदार

तीसरी पीढी का हो गया ऐसे ही उद्द्धार


सिक्खों को मारा गया दंगे हुए अनेक

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