
तुम वीरांगना हो जीवन की, तुम अपने पथ पर डटी रहो
चाहे उलाहना पाओ जितनी, तुम अपने जिद पर अड़ी रहो
गर्भ में ही मारेंगे तुमको, वो सांस नहीं लेने देंगे
कली मसल कर रख देंगे वो फूल नही बनने देंगे
तुम मगर गर्भ से निकल कर अपनी खुशबू बिखरा दो
तुम वीरांगना हो जीवन की, तुम अपने पथ पर डटी रहो
चाहे पथ पर पत्थर फेंके, शिक्षा से रोके तुमको
कुछ पुराने मनोवृत्ति वाले चूल्हे में झोंके तुमको
तुम ना डिगना अपने प्रण से, एकाग्रचित्त हो जमी रहो
तुम वीरांगना हो जीवन की, तुम अपने पथ पर डटी रहो
चाहे तेरे पहनावे पर कोई कितने तंज़ कसे
या फिर तेरे रहन सहन पर छोटी सोच के लोग हँसे
उन सबको तुम चुनौती मानो, बस अपनी धून में रमी रहो
तुम वीरांगना हो जीवन की, तुम अपने पथ पर डटी रहो
बातें होंगी ना जाने कितनी, जब तुम घर से निकलोगी
अंगारे हीं होंगे पथ पर, फिर भी तुम ना पिघलोगी
अपने श्रम के गंगा जल से, उन चिंग