एक जीवन मे नारी का तीन जन्म होता है
लेकिन हर जनम मे उसका कर्म अलग होता है
पहला रूप है पुत्री का, पिता के घर वो आती है
संग में अपने मात-पिता का स्वाभिमान भी लाती है
यहाँ कर्म हैं मात-पिता की सेवा निशदिन करते रहना
अपने घर की मर्यादा के, सीमाओं के अंदर रहना
लेकिन उसके सेवा भाव का, कोई मोल नहीं मिलता
धन पराया बताकर उसको, धन पिता का नही मिलता
दूसरा रूप है पत्नी का, जो ब्याह पति घर आती है
उसपर अपना पूरा जीवन, नि:स्वार्थ होकर लुटाती है
अपना घर समझ कर जिसपर वो वारी-वारी जाती है
उसी घर में गैरों जैसा, व्यवहार हमेशा पाती है
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