भूख लगती है कभी जो, याद इसकी आती है
ना मिले तो पेट में फिर, आग सी लग जाती है
राजा हो या रंक देखो, इसके सब ग़ुलाम हैतीनो
वक़्त खाने से पहले, करते इसे सलाम है
रुखी-सुखी जैसी भी हो, पेट यह भर जाती है
चाह में अपनी हर किसी, को राह से भटकाती है
जिसने इसको पा लिया, वो राज सब पर कर गया
ना मिली जिसे उसे, मुज़रीम भी देखो कर गया
कितना भी हो प्रेम सब में, इसके आगे फीका है
ये चलाता है सभी को, सब पर वश इसिका है
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