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पुरुष की व्यथा

अंतरराष्ट्रीय_पुरुष_दिवस

पुरूष क्यूँ

रो नहीं सकता?

भाव विभोर हो नहीं सकता

किसने उससे

नर होनेका अधिकार छिन लिया?

कहो भला

उसने पुरुष के साथ ऐसा क्यूँ किया?

क्या उसका मन आहत नहीं होता?

क्या उसका तन

तानों से घायल नहीं होता?

झेल जाता है सब कुछ

बस अपने नर होनेकी आर में

पर उसे रोने का अधिकार नहीं है

रोएगा तो कमज़ोर माना जायेगा

औरों से उसे

कमतर आँका जायेगा

समाज में फिर तिरस्कार होता है

अपनों के हीं सभा में

फिर उसका वहिष्कार होता है

पर उसका

रोना भी तो जरूरी है ना

मन की व्यथा

कहना भी तो जरूरी है ना

एक दिन ऐसा आयेगा

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