![माँ-बाप's image](/images/post_og.png)
माँ-बाप को समझना कहाँ आसान होता है?
उनका साया हीं हम पर छत के समान होता है
प्रेम का बीज़ जिस दिन से माँ के पेट में पलता है
बाप के मस्तिष्क मे तब से हीं वो धीरे-धीरे बढ़ता है
पहले दिन से हीं बच्चा माँ के दूध पर पलता है
पर पिता के मेहनत से माँ के सिने में दूध पनपता है
सूने घर में कोई बालक जब किलकारी भरता है
उसके मधुर स्वर से हीं तो दोनों को बल मिलता है
पकड़ कर उंगली जीन हाथों ने चलना तुझको सिखाया
अपने हिस्से का बचा निवाला जिसने तुझको खिलाया
सुबह ना देखी रात ना जानी हर मौसम की मार सही
एक तेरी हीं हठ के कारण दोनों की चाह अधूरी रही
तेरी शिक्षा के खातिर उन्होनें जाने कितने कष्ट सहे
उम्र भर की पूंजी लुटाई बिना एक भी शब्द कहे
जब-जब तूने ठोकर खाई हिम्मत हार के बैठ गया
मात-पिता ने स्नेह से अपने डाला तुझमे जोश नया
बड़ा हुआ तू समझ ना पाया किसने तुझको बनाया है
किसने खून जलाया अपना किसने दूध पिलाया है
तू जीते जीवन में हरदम जो इस कारण सब हारे थे