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मैं थक गया हूँ

थक गया हूँ झूठ खुद से और ना कह पाऊंगा

पत्थरों सा हो गया हूँ शैल ना बन पाऊंगा

 

देखते है सब यहाँ मुझे अजनबी अंदाज़ से

पास से गुजरते है तो लगते है नाराज़ से

 

बेसबर सा हो रहा हूँ जिस्म के लिबास में

बंद बैठा हूँ मैं कब से अक्स के लिहाफ में

 

काटता है खालीपन अब मन कही लगता नहीं

वक़्त इतना है पड़ा के वक़्त ही मिलता नहीं

 

रात भर मैं सोचता हूँ कल मुझे करना है क्या

है नहीं कुछ हाथ मेरे सोच कर डरना है क्या

 

टोक ना दे कोई मुझको मेरी इस बेकारी में

कुछ नहीं है

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