![क्षितिज's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/post_pics/%40aman-sinha/None/%E0%A4%95%E0%A4%B7%E0%A4%A4%E0%A4%9C_27-09-2021_10-38-20-AM.jpg)
वो जहां पर असमा और धरा मिल जाते है
छोर मिलते ही नहीं पर साथ में खो जाते है
है यही वो स्थान जिसका अंत ही नहीं
मिल गया या खो गया है सोचते है सब यही
सबको है चाह इसकी पर राह का पता नहीं
बिम्ब या प्रतिबिम्ब है ये भ्रम सभी को है यही
कामना को पूर्ण करने श्रम छलांगे भरता है
मरीचिका के जाल में जैसे मृग कोई भटकता है
है धरा का अंत वही जिस बिंदु से शुरुआत है
यात्रा अनंत इसकी कई युगों की बात है
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