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जिस दौर से हम तुम गुज़रे हैं

जिस दौर से हम-तुम गुजरे है,

वो दौर ज़माना क्या जाने?

हम दोनों हीं बस किरदार यहाँ के,

कोई अपना अफसाना क्या जाने 


रंगमंच के पर्दे के पीछे

चरित्र सभी गढ़े जाते है 

जो कहते है जो करते है

वो बोल सभी लिखे जाते है

 

हम दोनों अपने किरदार में थे

अपनी बेचैनी कोई क्या जाने? 

जिस दौर से हम तुम गुजरे है,

वो दौर जमाना क्या जाने? 


है एक लम्हे का साथ सही,

पर साथ पुराना लगता है 

तुम कंधे पर जो हाथ धरे

हर बोझ धुआँ सा लगता है 


हम कैसा बोझ उठाते है

वो बोझ कहो कोई क्या जाने? 

Tag: कविता और16 अन्य
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