कोठियां हजारों मैंने हाथों से बनाई है
गाड़ियां करोड़ो की हो मैंने तो चलाई है
अनगिनत ख़ज़ाने का पहरेदार मैं रहा हूँ
मालिकों के काले सच का राजदार मैं रहा हूँ
काम कोई छोटा हो या भेदना पहाड़ हो
मुस्कुरा के करता हूँ मैं चाहे वेदना अपार हो
गन्दगी समाज की मैं साफ करता रह गया
कोई कुछ खोया नहीं और मुफ्त में मैं मर गया
कपडे धो रहा कहीं पे खाना मैं बना रहा
जुते साफ़ करके अपना पेट मैं चला रहा
काम सब सफाइयों के अपने ही तो हाथ हैं
साफ़ ये वातावरण हैं जब तक अपना साथ हैं
उम्र भर समाज में जो हमसे तन भी ना छुआते हैं
अग्निद
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