गुमशुदा सा हो गया हूँ, ज़िन्दगी की राह में
गैर खुद से हो गया हूँ, अपनो की परवाह में
क्या सफर है ज़िन्दगी, ये ख़त्म होती ही नहीं
ओढ़ राखी है कफ़न, पर दफ़्न होती ही नहीं
है कहाँ वो अनकहे से, जो शब्द मैंने खो दिए
क्रोध के कुछ बीज जैसे, अपने मन में बो दिए
लड़ना अपने हक़ के खातिर, क्यों मुझसे ना हो पाएगा
जोश मैंने खो दिया, जो लौट के कब आए
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