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घर की याद

वर्षों बीते घर को छोड़े

सबसे अपना रिश्ता तोड़े

जिस क्षण घर से निकला था मैं

माँ खड़ी थी द्वार को घेरे

पर मैं उस दिन रुका नहीं

अपने जिद से डिगा नहीं

जाने कैसी मनहूस घड़ी थी

खड़ा हुआ पर मुड़ा नहीं


सब कुछ पीछे छुट गया

दिल सभी का टूट गया

घर से पैर निकाला मैंने

भाग्य हीं मेरा फुट गया

माँ ने मुझको रोका था

भाई ने पहले हीं टोका था

पर मेरे आवारापन ने मुझे

घर जाने से रोक दिया


रिश्ते सारे बिखर गए

एक-एक कर सब फिसल गए

कभी जो अपने होते थे सब

इन वर्षों में बदल गएं

अक्सर मैं अपने सपनों मे

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