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दंगे के बाद

क्या कभी तुम गुज़रे हो उन ख़मोश गलीयों से 

जहाँ पिछली रात दंगे की रात थी 

        

चारों तरफ एक चीखती खामोशी छाई है 

तंग गलीयों की दीवार पर 

खून के धब्बे फैले थे 

        

कहीं किसी की टूटी चप्पल भागती नज़र आती है         

किसी के खून से सने पंजों के निशान 

दरवाजों पर मदद मांगती नज़र आती है             

कई मकान फुंके गए होंगे 


ना जाने कितनी दुकाने जलायी गई होंगी 

ना जाने कितने कफन और चिताओं की दुकानों की 

दिवाली चार महीने पहले ही आ गयी 

                

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