ना राधा सी उदासी हूँ मैं, ना मीरा सी प्यासी हूँ
मैं रुक्मणी हूँ अपने श्याम की, मैं हीं उसकी अधिकारी हूँ
ना राधा सी रास रचाऊँ ना, मीरा सा विष पी पाऊँ
मैं अपने गिरधर को निशदिन, बस अपने आलिंगन मे पाऊँ
क्यूँ जानु मैं दर्द विरह का, क्यों काँटों से आंचल उलझाऊँ
मैं तो बस अपने मधुसूदन के, मधूर प्रेम में गोते खाऊँ
क्यूँ ना उसको वश में कर लूँ, स्नेह सदा अधरों पर धर लूँ
अपने प्रेम के करागृह में, मैं अपने कान्हा को रख लूँ
क्यों अपना घरबार त्याग कर, मैं अपना संसार त्यागकर
फिरती रहूँ घने वनों में, मोह माया प्रकाश त्यागकर
क्युं उसकी दासी बनकर, खुद मैं अपना स्तर ग
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