शिष्टाचार ही मिलती है पागलपन नहीं मिलता
गैरों की बोली में अपनापन नहीं मिलता
अपनी भाषा माँ का आँचल याद हमेशा आती है
द्वेष,क्रोध,विलाप हो जितना, हर भाव समझाकर जाती है
पर भाषा के बल पर चाहे समृद्ध जितने भी हो जाओ
पर वहाँ पर डटें रहने की दृढ़ता अपनी भाषा से हीं पाओ
किराए के मकान में कभी आँगन नहीं मिलता
गैरों की बोली में अपनापन नहीं मिलता
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