रात की गहराइयों से क्या पूछूं
सबनम आई थी समा जलाने
या गई मिट्टियों की प्यास बुझाने
सवालों के बस्तर, है बंधे मन में
जी ना लग रहा, इसके भजन में
भींगे भींगे अरमान है
जंग लगी कमान है
ना पूछो क्या फरमान है
खतरे में पड़ी जान है
टहनियों पे बूंदे उछल रही है
बदन के ताप से मचल रही है
कोई आए बुझाए इस तड़पन को
आंखों को खूब-रु की कमी खल रही है
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