![बेटियाॅं's image](/images/post_og.png)
बेटों से पहले हिसाब सिख जाती है
घर के किनारों में अक्सर दिख जाती है
पापा के हर बात में हां कहती है
ना चाहते हुए भी "बिक" जाती है..
किससे कहे मन के
दरारों की कहानियां
महलों में कैद हो जाती,
सबके दिल की रानियां..
सारे रिश्तों की डोर बांध रखी है
अंदर के ज्वाला को साध रखी है
सिमटे सिमटे आसमां है उनके
सीने पे रिश्तों का बोझ जमा है जिनके..
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