वो अपना बूढ़ा गाँव,
पीपल की छाँव,
अब मरने को है ।
खत्म हुआ सब,
बीमार हुआ गाँव ।
कमी विटामिन की तरह,
हो गई संस्कारों की ।
मधुमेह की तरह,
बढ़ गई शहर की हवा ।
वो मिट्टी के मकान टूटे,
समय की भाग दौड़ में ।
अपनो का अपनापन छूटा,
रूपये की होड़ में ।
आए पक्के मकान,
खुल गई कई दुक
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