आईना खुद में कहा रहता है।
जिससे भी मिलता है उसी सा दिखता है।
उम्रें गुजर जाती है इक इक पल सहेजते हुए उसकी।
कभी टूटता है तो कभी बिखरता है।
लोग टूटते बिखरते हुए इक उम्र काटते है।
और आईना सब कुछ बयां करता रहता है।
देख आईना कई पल जवा
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