तुम सुनो गुल–मोहर's image
350K

तुम सुनो गुल–मोहर

तुम सुनो गुल-मोहर


ये बदलती हवा तो महज़ इक इशारा समेटे हुए ज़ेहन में है मिरे

तुम सुनो गुल–मोहर

ये हसीं वादियाँ ये बहारों के मौसम गुज़र जाऍंगे

पतझड़ों के इशारे पे तुम और हम टूट कर वादियों में बिखर जाएँगे

साज़िशों की गली से गुज़रते हुए और अफ़ीमों के मद से शराबोर हो

मंज़िलों की तमन्ना लिए ज़ेहन में बारिशों के सहारे अगर जाएँगे

सोचता हूँ कभी के तिरे आख़िरी फूल के शाख़ से टूट जाने के बाद

तेरे बाग़ों में ख़ुशबू बचे ही नहीं तो ये आदी परिंदे किधर जाएँगे

ये हरी डालियाँ ये भर

Read More! Earn More! Learn More!